Feature of MGNREGA मनरेगा का भविष्य

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत के पीछे मकसद था कि इससे गरीब और साधनहीन ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम सौ दिन का रोजगार उपलब्ध करा कर उनकी जीवन यापन संबंधी मुश्किलों को कुछ कम किया जाए। मगर ठेकेदारों और बिचौलियों के चलते यह योजना अपने लक्ष्य से काफी पीछे चलती रही। फर्जी कागजात के जरिए गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को भी इस योजना का लाभ पहुंचाने, मजदूरी के भुगतान में देरी और धोखाधड़ी की शिकायतें आम हो गर्इं। इससे पार पाने के कई उपाय निकाले गए।

उनमें बिचौलियों और ठेकेदारों की पहुंच से दूर रखने के मकसद से मजदूरी सीधे श्रमिकों के खाते में भेजे जाने जैसे प्रावधान किए गए। मगर उसमें भी सेंध लगाई जाने लगी। इन्हें देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले बजट में ही संकेत दे दिया था कि वह मनरेगा के स्वरूप में बदलाव कर उसे अधिक व्यावहारिक और पारदर्शी बनाने का प्रयास करेगी। मगर पिछले दिनों जिस तरह उसने इस कानून में बदलाव की कोशिश की और अब ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने इस योजना को ही समाप्त करने का संकेत दिया है उससे स्वाभाविक ही सामाजिक कार्यकर्ताओं में रोष पैदा हुआ है। मनरेगा की सीमा घटा कर पहले से कम कर दी गई है और इसे प्रखंड के एक तिहाई हिस्से तक सीमित करने, काम के हिसाब से बजट में प्रावधान करने जैसे संशोधन किए गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का तर्क वाजिब है कि इस विषय में लोगों से कोई राय नहीं ली गई। यह कानून यूपीए सरकार के वक्त जरूर लागू किया गया था, पर इस फैसले में सभी दलों की सहमति थी। इसे कोई सरकार अपने हिसाब से नहीं बदल सकती।

यह सही है कि मनरेगा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है, पर इससे पार पाने का तरीका यह नहीं हो सकता कि इस योजना को ही समाप्त कर दिया जाए। इससे बहुत सारे गरीब ग्रामीणों को रोजगार सुलभ है। अगर यह योजना बंद हो जाती है तो उनके सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो जाएगा। कायदे से इस योजना की राह में आ गए रोड़ों को दूर करने की कोशिश होनी चाहिए। किस तरह ठेकेदारों और बिचौलियों के चंगुल से श्रमिकों को मुक्त कराया और उनके श्रम का वाजिब भुगतान सुलभ कराया जाए। विचित्र है कि एक तरफ राजग सरकार ग्रामीण विकास की नई योजनाएं शुरू कर रही है, दूसरी तरफ गरीब ग्रामीणों की आर्थिक सबलता से जुड़ी एक महत्त्वाकांक्षी योजना को खत्म करने का विचार कर रही है। हर गरीब को रोजगार पाने का अधिकार है, मनरेगा के जरिए इस मकसद को पूरा करने में मदद मिल रही थी। राजग सरकार को इसे महज इस आधार पर बंद करने का मन नहीं बनाना चाहिए कि इसकी शुरुआत दूसरी सरकार ने की थी। योजनाओं को विचारधारा के आधार पर देखने से उनका मकसद कभी पूरा नहीं हो पाता।

मनरेगा के अपने लक्ष्य तक न पहुंच पाने के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। बहुत सारे लोग लंबे समय से अपनी मजदूरी के भुगतान की आस लगाए बैठे हैं, उन्हें कैसे पैसा मिले, बिचौलियों और ठेकेदारों को किस तरह जवाबदेह बनाया जाए, किस तरह इस योजना के तहत होने वाले कार्यों पर कड़ी नजर रखी जा सके आदि पहलुओं को दुरुस्त करने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और ग्रामीण विकास के विशेषज्ञ सुझाव देते रहे हैं। बेहतर होगा कि इन तमाम पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद कोई कदम उठाने की बात सोची जाए ।

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Rajkumar Meena

राजकुमार मीणा

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